Poems by Mamta Sharma
Wednesday, 14 November 2018
पहली मर्तबा कुछ हाथ छूटे है
कुछ पुराने दोस्त,
कुछ पुराने रिश्ते,
जिन से नातें टूटे है,
की अब मशरूफ रहो तुम भी,
मशरूफ रहे वो भी,
कोन सा पहली मर्तबा कुछ हाथ छूटे है||
खुद से रूठ के खुद मान जाना
रिवायत थी खुद से रूठ के खुद मान जाने की,
जो खोया था उसे फिर ढूंढ लाने की,
सब कुछ खोया भी,
सब कुछ पाया भी,
पर जो खो गया वो पाया नहीं,
जो पाया वो खोया ही नहीं!
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