Poems by Mamta Sharma
Thursday, 25 April 2019
मन ही मन को कैसे समझाए!!
चाह के भी जब मन निकले ना मझधार से,
मुझ में ही रह कर मुझ में ही मन टूटा जाए,
मन की ये पीड़ मन ही मन को कैसे समझाए!!
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