Thursday, 17 April 2025

शाख़-ए-गुल सी एक लड़की,


शाख़-ए-गुल सी एक लड़की,

तुम महकती हो, 

चहकती हो, 

गुनगुनाती हो, 

खिलखिलाती हो,

बहार बन के गुलिस्तान बनाती हो,

और फिर पतझड़ सी, 

पत्ते -पत्ते सी झड़ती हो,

बारिश की बूंद सी बरसती हो,

और फिर शाखे गुल सी एक लड़की,

तुम अपने में जाने कितने जहाँ बनाती हो!

-Mamta-