शाख़-ए-गुल सी एक लड़की,
तुम महकती हो,
चहकती हो,
गुनगुनाती हो,
खिलखिलाती हो,
बहार बन के गुलिस्तान बनाती हो,
और फिर पतझड़ सी,
पत्ते -पत्ते सी झड़ती हो,
बारिश की बूंद सी बरसती हो,
और फिर शाखे गुल सी एक लड़की,
तुम अपने में जाने कितने जहाँ बनाती हो!
-Mamta-