ज़िंदगी की ये नयी सी चाल है,
चंद अनजान पूछते है और क्या हाल है,
अब घर मै छुट्टी वाले दिन एक नयी सी बात है,
जाने कौन सी अब आखिरी सी रात है,
जिस ने कभी करीब से देखा नहीं मुझ को,
वो भी दलाली करने अब मेरे घर आते है,
मेरी उम्र का हिसाब किताब कर के,
अब वो मुझ को अपना गणित समझाते है,
जिसे भी देखती हु अब करीब से,
सब में एक मरीज देखती हु, चेहरे तो है जाने पहचाने,
पर सब में समाज के ठेकेदार देखती हूँ,
जो निभा नहीं सके हसि ख़ुशी अपने रिश्ते,
वो मिल बैठ के रिश्तों की बतियाते है,
जाने क्या हाल है जाने क्या बताते है,
मै उन मई होकर भी उन का हिस्सा नहीं,
मै खुद में खो कर खुद का किस्सा सही!!
चंद अनजान पूछते है और क्या हाल है,
अब घर मै छुट्टी वाले दिन एक नयी सी बात है,
जाने कौन सी अब आखिरी सी रात है,
जिस ने कभी करीब से देखा नहीं मुझ को,
वो भी दलाली करने अब मेरे घर आते है,
मेरी उम्र का हिसाब किताब कर के,
अब वो मुझ को अपना गणित समझाते है,
जिसे भी देखती हु अब करीब से,
सब में एक मरीज देखती हु, चेहरे तो है जाने पहचाने,
पर सब में समाज के ठेकेदार देखती हूँ,
जो निभा नहीं सके हसि ख़ुशी अपने रिश्ते,
वो मिल बैठ के रिश्तों की बतियाते है,
जाने क्या हाल है जाने क्या बताते है,
मै उन मई होकर भी उन का हिस्सा नहीं,
मै खुद में खो कर खुद का किस्सा सही!!

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