Wednesday, 22 May 2019

आसमानो का ख्वाब फिर किसलिए,

जमीने जो सम्भाली ना गयी,
आसमानो का ख्वाब फिर किसलिए,

और रातें जो है अमावास सी,
चाँद की चांदनी फिर किसलिए,

दरवाजे के उस पार बेफ़िक्री बहुत है,
मेरी ये फ़िक्र फिर किसलिए,

गरूर इतना कि इंसान दीखते नहीं,
है ये झूठी इंसानियत फिर किसलिए!!

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