Poems by Mamta Sharma
Thursday, 23 May 2019
खुद की कितनी तोहीन की है,
आंसुओ की बारिश में,
बरसो भीग के समझ आया,
खुद की कितनी तोहीन की है,
समझा के दीवारों को,
खुद की हैसियत कम की है!!
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