कुछ जला था,
कुछ जलता ही रहा,
कुछ धुआँ -धुआँ,
कुछ राख था,
जो रह गया था मुझ में,
वो कुछ रुआब था,
कुछ शबाब था,
कुछ जद्दो जहद थी खुद से,
कुछ हालात का,
कुछ रिश्तों का तकाज़ा था,
हर कोई पास था,
पर कोई न साथ था,
जो अब रह गया था मुझ में,
वो बस रुआब था!
-Poetry by Mamta-
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