उफ़ से आह तक का सफर भी अजीब है,
पलकों को बिन भिगोये,
आँखों में समन्दर है,
जो जल गया मेरे अंदर ही,
वो कुछ राख है,
कुछ अँधेरा है,
बह गया जो बारिशो सा,
कुछ सुकून है,
कुछ अंदर बचा खुचा एक और समन्दर है||
Image courtesy : Ocean in her eyes (Margaryta Verkhovets Poland).
रिवायत थी खुद से रूठ के खुद मान जाने की,
जो खोया था उसे फिर ढूंढ लाने की,
सब कुछ खोया भी,
सब कुछ पाया भी,
पर जो खो गया वो पाया नहीं,
जो पाया वो खोया ही नहीं!
Tuesday, 13 November 2018
ट्रैन के पीछे भागती बाबा की छोटी सी गुड़िया,
अब शहर छोड़ के जब भी जाती है,
बाबा की बड़ी सी गुड़िया,
सब यादें और बचपन स्टेशन पर ही छोड़ जाती है,
बाबा की छोटी सी गुड़िया,
नए शहर के स्टेशन पर,
छोटे से मुन्ने की,
बन जाती है समझदार सी मम्मा||